In India, in the ancient scriptures, Vedas and Puranas, religious texts and sages and sages have placed greater emphasis on the purity of the environment. In the Vedas, considering the environment provided by nature as a deity, it is said that-"Yo Devoganon Yo Psu Cho World Bhu Nama Special,Yo dispenser, yo botanical picture, devay namo namahThat is, which is covered with the creation, fire, water, sky, earth, and air, and which is present in medicines and flora. We salute that environmental god.Nature has been extremely generous on humans. Since its rise on earth, humans have been dependent on nature for their survival. Different types of tools are needed to fulfill human needs. It is only by these resources that the basic needs of human being are fulfilled by bread, cloth and house. In the absence of these means, a pleasant human life cannot be imagined. भारतवर्ष में प्राचीन शास्त्रों, वेद-पुराणों में, धर्म ग्रन्थो में तथा ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण की शुद्धता पर अधिक बल दिया है । वेदों में प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण को देवता मानकर कहा गया है कि-‘‘यो देवोग्नों यो प्सु चो विष्वं भुव नमा विवेष,यो औषधिषु, यो वनस्पतिषु तस्में देवाय नमो नमः’’अर्थात जो सृष्टि, अग्नि, जल, आकाष, पृथ्वी, और वायु से आच्छादित है तथा जो औषधियों एवं वनस्पतियों में विद्यमान है । उस पर्यावरण देव को हम नमस्कार करते है ।प्रकृति मानव पर अत्यंत उदार रही है । पृथ्वी पर अपने उद्वव के बाद से ही मानव अपने अस्तित्व के लिये प्रकृति पर निर्भर रहा है । मानवीय आवष्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों की आवष्यकता होती है इन संसाधनों द्वारा ही मानव की मूलभूत आवष्यकताएं रोटी, कपड़ा एवं मकान की पूर्ति होती है । इन साधनों के अभाव में सुखद मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है ।
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Upadhyay, R. (2015). ROLE OF SOCIETY IN CONSERVATION OF NATURAL RESOURCE. International Journal of Research -GRANTHAALAYAH, 3(9SE), 1–3. https://doi.org/10.29121/granthaalayah.v3.i9se.2015.3249
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